सुप्रभात!!
“क्षमा बड़न को चाहिए, छोटन को उत्पात।
का रहीम हरि को घट्यो, जो भृगु मारी लात।।”
बड़ों को चाहिए कि छोटों को उनकी नासमझी के लिए क्षमा कर दें। अर्थात जो क्षमा करते हैं, वही बड़े हैं।
ईर्ष्या-द्वेष रखने से आप स्वयं पर बोझ डाल रहे हैं और दुःखों को बुलावा दे रहे हैं। किसी को क्षमा कर हम किसी के प्रति अनुग्रह नहीं कर रहे, बल्कि स्वयं को चिंतामुक्त कर रहे हैं।
मैने यह महसूस किया है, देखा है… अगर मन मे किसी के प्रति क्रोध हो, गुस्सा हो और अगर किसी के कृत्य के प्रति हमारी असहमति हो हमारा मन अशान्त हो या खिन्न हो तो ऐसी परिस्थितियों में हम स्वयं अशान्त और बेचैन रहने लगते हैं; हमारे स्वभाव मे चिड़चिड़ापन आ जाता है। ऐसे में एक बार आप आज़मा कर देख लें- जिस किसी के प्रति मन में गुस्सा है उसे दिल से माफ कर दें। आप स्वयं महसूस करेंगे किआश्चर्यजनक ढंग से आपकी तबियत अच्छी होने लगेगी। धीरे- धीरे आप स्वस्थ और प्रसन्न रहने लगेंगे।
इसीलिए हमारे शास्त्रों में भी कहा गया है-” क्षमा वीरस्य भूषणं”।
क्षमाशीलता सहनशीलता की पराकाष्ठा है, किन्तु इस सब का आशय यह भी नहीं कि हमारे प्रति या समाज के प्रति अपराध करने वालों को भी हम क्षमा कर दें। अपराधी को दंडित करें और नासमझी में या ईर्ष्यावश हमारे प्रति गलती करने वाले को यथासंभव क्षमा करें।
आप सभी का दिवस मंगलमय हो।