सुप्रभात!
ये हम प्रतिदिन मंदिरों, मस्जिदों, गिरिजाघरों, गुरुद्वारों में जो भीड़ देखते हैं इसका मूल कारण क्या है??
मोक्ष प्राप्ति की इच्छा??
जगत का कल्याण करने भावना??
सर्वे भवन्तु सुखिनः की प्रार्थना के लिए???
नहीं..नहीं…नहीं……!!!
इसका मूल कारण है भय!! जी हां, भय!!
जो है उसके खो जाने का भय, जो नहीं है वह मिलेगा कि नहीं इसका भय, रोग-शोक से ग्रसित हो जाने का भय, शादी के सफल न होने का भय, परीक्षा में फैल हो जाने का भय, चुनाव में हार जाने का भय, जीतने के बाद मिला पद खो जाने का भय, नौकरी का भय, प्रोमोशन की चाह, और भी न जाने क्या क्या!!
एक दिन अचानक से भगवान यह घोषणा कर दे कि संसार के समस्त लोगों को उनके मनोनुकूल जीवन प्राप्त होगा…..मेरा दावा है धर्मस्थलों पर हाजरी एक चौथाई से भी कम रह जाएगी!!
यह भय ही है जो हमसे कई अच्छे कार्य करवाता है और यह भय ही है जो हमें जीवन में कई बार आगे बढ़ने से रोकता है।
जिस दिन हमें यह सच्चाई समझ में आ गई कि इस संसार में जो भी लोग या वस्तुएं जिन्हें हम अपनी समझते हैं वे वस्तुतः अपनी नहीं हैं। वे सब इस संसार का ही हिस्सा है और हम सब इन्हें मिल बांट कर उपभोग कर रहे हैं, उसी दिन हमारे भीतर का भय नष्ट हो जाएगा और हमारे मन में भी ईश्वर के प्रति भय के स्थान पर कृतज्ञता का भाव स्वतः जागृत हो जाएगा।
याद कीजिये गीता में श्री कृष्ण का यह उपदेश-” तुम्हारा क्या था जो तुमने खो दिया?”
जिस पल हमने खोने का भाव हृदय से निकाल दिया, उस पल से हम पूर्ण भयमुक्त हो कर सद्कर्म करने से कभी नहीं हिचकेंगे और सद्कर्म का परिणाम सदैव सकारात्मक और प्रसन्नता लाने वाला ही होता है।
आइये, भय का त्याग करें और भयमुक्त जीवन का शुभारंभ!!!