जामवंत बोले दोउ भाई।
नल नीलहि सब कथा सुनाई।।
राम प्रताप सुमिरि मन माहीं।
करहु सेतु प्रयास कछु नाहीं।।
बोलि लिए कपि निकर बहोरी।
सकल सुनहु बिनती कछु मोरी।।
राम चरन पंकज उर धरहू।
कौतुक एक भालु कपि करहू।।
धावहु मर्कट बिकट बरूथा।
आनहु बिटप गिरिन्ह के जूथा।।
सुनि कपि भालु चले करि हूहा।
जय रघुबीर प्रताप समूहा।।
अति उतंग गिरि पादप लीलहिं लेहिं उठाइ।
आनि देहिं नल नीलहि रचहिं ते सेतु बनाइ।।
सैल बिसाल आनि कपि देहीं।
कंदुक इव नल नील ते लेहीं।।
देखि सेतु अति सुंदर रचना।
बिहसि कृपानिधि बोले बचना।।
परम रम्य उत्तम यह धरनी।
महिमा अमित जाइ नहिं बरनी।।
करिहउँ इहाँ संभु थापना।
मोरे हृदयँ परम कलपना।।
हम सभी जानते हैं कि जब माता सीता की खोज महाबली हनुमानजी ने की तब श्रीराम वानर-भालुवों की सेना लेकर लंका की ओर चल पड़े। मार्ग में 100 योजन विस्तार वाला विशाल समुद्र था जिसके उस पार लंका नाम की नगरी थी। श्रीराम ने समुद्र की उपासना की पर वह कोई सहायता नहीं कर सका इस पर श्रीराम कुपित होकर समुद्र को सुखाने को अपने धनुष में बाण का संधान किया। तब समुद्र ने प्रकट हो कर श्रीराम से क्षमा याचना की और समुद्र पर नल-नील की सहयता से पुल बनाने का उपाय सुझाया। इस प्रकार वानर-भालुवों ने मिल कर सेतु बनाने का कार्य प्रारम्भ किया।
पर क्या आप जानते है की वानर-भालुवों की सेना ने कितने दिन में सेतु बंधन का कार्य किया?
रामायण के अनुसार समुद्र पर पुल बनाने में वानर-भालुवों की सेना को पांच दिन का समय लगा। पहले दिन वानरों ने 14 योजन, दूसरे दिन 20 योजन, तीसरे दिन 21 योजन, चौथे दिन 22 योजन और पांचवे दिन 23 योजन पुल बनाया था।
इस प्रकार कुल 100 योजन लंबाई का पुल समुद्र पर बनाया गया। रामायण कालीन यह पुल पूरी तरह से पत्थरो से बनाया गया था। श्रीराम कृपा के प्रताप से सारे पत्थर समुद्र के जल में तैर रहे थे। यह पुल 10 योजन चौड़ा था।
(एक योजन लगभग 13-16 किमी होता है)