श्री हनुमान जन्मोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं
हनुमान (संस्कृत: हनुमान्, आंजनेय और मारुति भी) परमेश्वर की भक्ति की सबसे लोकप्रिय अवधारणाओं और भारतीय महाकाव्य रामायण में सबसे महत्वपूर्ण व्यक्तियों में प्रधान हैं। वह भगवान शिवजी के 11वें रुद्रावतार, सबसे बलवान और बुद्धिमान माने जाते हैं। रामायण के अनुसार वे जानकी के अत्यधिक प्रिय हैं। आनंद रामायण के अनुसार हनुमानजी की गिनती इस धरा पर अवस्थित आठ अमर मनीषियों में होती है। अन्य सात हैं, अश्वत्थामा, बलि, व्यास, विभीषण, नारद, परशुराम और मार्कण्डेय।
हनुमान जी का अवतार भगवान राम की सहायता के लिये हुआ।
हनुमान जी के जन्म को लेकर विद्वानों में अलग-अलग मत हैं जिनमें तीन तिथियाँ
(चैत्र पूर्णिमा, चैत्र शुक्ल एकादशी तथा कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी) सर्वाधिक प्रचलित हैं |
इसमें से चैत्र पूर्णिमा को हनुमान जन्म सर्वमान्य है | इस मत को निम्नलिखित श्लोक से समझा जा सकता है:
“महाचैत्री पूर्णीमाया समुत्पन्नौ अन्जनीसुतः। वदन्ति कल्पभेदेन बुधा इत्यादि केचन ।।”
हनुमान का जन्म मेष लग्न में, चित्रा नक्षत्र में हुआ था।
हनुमान जी के पराक्रम की असंख्य गाथाएं प्रचलित हैं। इन्होंने जिस तरह से राम के साथ सुग्रीव की मैत्री कराई और फिर वानरों की मदद से राक्षसों का मर्दन किया, वह अत्यन्त प्रसिद्ध है।
ज्योतिषीयों के सटीक गणना के अनुसार हनुमान जी का जन्म 1 करोड़ 85 लाख 58 हजार 112 वर्ष पहले चैत्र पूर्णिमा को मंगलवार के दिन चित्रा नक्षत्र व मेष लग्न के योग में सुबह 6.03 बजे भारत देश में आज के झारखंड राज्य के गुमला जिले के आंजन नाम के छोटे से पहाड़ी गाँव की एक गुफ़ा में हुआ था।
इन्हें बजरंगबली के रूप में जाना जाता है क्योंकि इनका शरीर वज्र की तरह था। वे पवन-पुत्र के रूप में भी जाने जाते हैं। मारुत (संस्कृत: मरुत्) का अर्थ हवा है। नंदन का अर्थ बेटा है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार हनुमान “मारुति” अर्थात “मरुत-नंदन” (हवा का बेटा) हैं।
हनुमान जी के बारह नाम
“हनुमानञ्जनी सूनुर्वायुपुत्रो महाबल:।
रामेष्ट: फाल्गुनसख: पिङ्गाक्षोमितविक्रम:।।
उदधिक्रमणश्चैव सीताशोकविनाशन:।
लक्ष्मणप्राणदाता च दशग्रीवस्य दर्पहा।।”
उनका एक नाम तो हनुमान है ही, दूसरा अंजनी सूनु, तीसरा वायुपुत्र, चौथा महाबल, पांचवां रामेष्ट (राम जी के प्रिय), छठा फाल्गुनसख (अर्जुन के मित्र), सातवां पिंगाक्ष (भूरे नेत्र वाले) आठवां अमितविक्रम, नौवां उदधिक्रमण (समुद्र को लांघने वाले), दसवां सीताशोकविनाशन (सीताजी के शोक को नाश करने वाले), ग्यारहवां लक्ष्मणप्राणदाता (लक्ष्मण को संजीवनी बूटी द्वारा जीवित करने वाले) और बारहवां नाम है- दशग्रीवदर्पहा (रावण के घमंड को चूर करने वाले) ये बारह नाम श्री हनुमानजी के गुणों के द्योतक हैं।
श्रीराम और सीता के प्रति जो सेवा कार्य उनके द्वारा हुए हैं, ये सभी नाम उनके परिचायक हैं और यही श्री हनुमान की स्तुति है। इन नामों का जो रात्रि में सोने के समय या प्रातःकाल उठने पर अथवा यात्रारम्भ के समय पाठ करता है, उस व्यक्ति के सभी भय और कष्ट दूर हो जाते हैं।
हर प्रकार के कष्टों के निवारण के लिए हनुमान जी के ये मंत्र, श्लोक तथा स्त्रोत बहुत ही प्रभावकारी हैं:-
हनुमान मंत्र :
हं हनुमंते नम:
प्रेत भूत बाधा दूर करने केलिए:
हनुमन्नंजनी सुनो वायुपुत्र महाबल:। अकस्मादागतोत्पांत नाशयाशु नमोस्तुते।।
यह हनुमान मंत्र भी अत्यंत असरकारक है –
ॐ दक्षिणमुखाय पच्चमुख हनुमते करालबदनाय
नारसिंहाय ॐ हां हीं हूं हौं हः सकलभीतप्रेतदमनाय स्वाहाः।
प्रनवउं पवनकुमार खल बन पावक ग्यानधन।
जासु हृदय आगार बसिंह राम सर चाप घर।।
द्वादशाक्षर हनुमान मंत्र :
ऊँ हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट।
मनोकामना पूर्ण करवाने केलिए :
महाबलाय वीराय चिरंजिवीन उद्दते।
हारिणे वज्र देहाय चोलंग्घितमहाव्यये।।
शत्रुओं और रोगों पर विजयपाने के लिए :
ऊँ नमो हनुमते रुद्रावताराय सर्वशत्रुसंहारणाय सर्वरोग हराय सर्ववशीकरणाय रामदूताय स्वाहा ||
इस मंत्र का भी जाप कर सकते है
हनुमान अंगद रन गाजे।
हांके सुनकृत रजनीचर भाजे।।
नासे रोग हरैं सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बल बीरा।।
संकट दूर करने का हनुमानमंत्र :
ऊँ नमो हनुमते रुद्रावताराय सर्वशत्रुसंहारणाय सर्वरोग हराय सर्ववशीकरणाय रामदूताय स्वाहा ||
शत्रुओं से मुक्ति पाने के लिएहनुमान जी के इस मंत्र काजाप करना चाहिए:
ॐ पूर्वकपिमुखाय पच्चमुख हनुमते टं टं टं टं टं सकल शत्रु सहंरणाय स्वाहा।
कर्ज से मुक्ति के लिए मंत्र :
ऊँ नमो हनुमते आवेशाय आवेशाय स्वाहा।
अपनी रक्षा और यथेष्ट लाभहेतु इस मंत्र का जाप करनाचाहिए
अज्जनागर्भ सम्भूत कपीन्द्र सचिवोत्तम।
रामप्रिय नमस्तुभ्यं हनुमन् रक्ष सर्वदा।।
मुकदमे में विजय प्राप्ती केलिए इस मंत्र का जाप करनाचाहिए
पवन तनय बल पवन समाना।
बुधि बिबेक बिग्यान निधाना।।
धन- सम्पत्ति प्राप्ति हेतु इसमंत्र का जाप करना चाहिए:
हनुमानजी की पूजा के दौरानइस मंत्र को पढ़ते हुए उनसेक्षमा-प्रार्थना करना चाहिए-
हनुमानजी की पूजा में इस मंत्रको पढ़ते हुए सुवर्णपुष्पसमर्पण करना चाहिए-
वायुपुत्र ! नमस्तुभ्यं पुष्पं सौवर्णकं प्रियम् |
पूजयिष्यामि ते मूर्ध्नि नवरत्न – समुज्जलम् ||
हनुमानजी की पूजा में इस मंत्रको पढ़ते हुए उन्हें ऋतुफलसमर्पण करना चाहिए-
फ़लं नानाविधं स्वादु पक्वं शुद्धं सुशोभितम् |
समर्पितं मया देव गृह्यतां कपिनायक ||
इस मंत्र को पढ़ते हुएपवनपुत्र हनुमानजी को सिन्दूर समर्पण करना चाहिए-
दिव्यनागसमुद्भुतं सर्वमंगलारकम् |
तैलाभ्यंगयिष्यामि सिन्दूरं गृह्यतां प्रभो ||
अंजनीपुत्र हनुमान की पूजाकरते समय इस मंत्र के द्वाराउन्हें पुष्पमाला समर्पण करनाचाहिए-
नीलोत्पलैः कोकनदैः कह्लारैः कमलैरपि |
कुमुदैः पुण्डरीकैस्त्वां पूजयामि कपीश्वर ||
हनुमानजी की पूजा करतेसमय इस मंत्र के द्वारा उन्हेंपंचामृत समर्पण करनाचाहिए-
मध्वाज्य – क्षीर – दधिभिः सगुडैर्मन्त्रसन्युतैः |
पन्चामृतैः पृथक् स्नानैः सिन्चामि त्वां कपीश्वर ||
मारुतिनंदन की पूजा में इसमंत्र के द्वारा उन्हें अर्घ्यसमर्पण करना चाहिए-
कुसुमा-क्षत-सम्मिश्रं गृह्यतां कपिपुन्गव |
दास्यामि ते अन्जनीपुत्र | स्वमर्घ्यं रत्नसंयुतम् ||
Sir,
Really appreciable work done by you.
Still miss your guidance in Tm club.
Regards
LikeLike