
ख्वाहिशों से नहीं गिरते हैं, फूल झोली में, कर्म की शाख को हिलाना होगा।
कुछ नहीं होगा महज़ अँधेरों को कोसने से, अपने हिस्से का दीया खुद ही जलाना होगा ।
जो लोग, जो कड़ी मेहनत करते हैं और धैर्य रखते हैं, उन्हें वांछित परिणाम प्राप्त करने के लिए इंतजार करना पड़ सकता है लेकिन वे अपने जीवन में कभी असफल नहीं हो सकते। और लोग, जो आलसी हैं और कड़ी मेहनत नहीं करना चाहते हैं, हमेशा अपनी किस्मत को कोसते हैं और भगवान पर चिल्लाते हैं। सत्य यह है कि “भगवान उन्हीं लोगों की मदद करते है जो खुद की मदद करते हैं”। इसका आशय यह कदापि नहीं है कि जहाँ आवश्यकता हो , आप वहाँ भी अपने अहंकार और खुद पर आतिआत्मविश्वास के कारण भगवान से मदद न माँगें और न ही खुद कुछ करें ।
” अपनी मदद खुद करें ” से मतलब है पहले जितना आपसे हो सके, जितना आप कर सकें, वो करें और फिर ईश्वर से प्रार्थना करें की इसके आगे वो आपकी सहायता करें। ईश्वर ने हमारे भीतर शक्तियों का भंडार सृजित किया हुआ है। आवश्यकता है उसे पहचानने और अवसरानुकूल उपयोग करने की। हमारे अंदर बहुत शक्ति होती है जैसे – शरीर ऋतुओं के अनुसार अनुकूलता बना लेता है , कई बार कुछ घाव अपने आप भर जाते हैं । कभी-कभी अंदर से ही ऐसी आवाज आती है कि ये करना चाहिए , ये नहीं करना चाहिए । अर्थात् सारे समाधान, सारे हल, सारी मदद, हमारे अंदर ही मौजूद है लेकिन हम उसे बाहर ढूंढते रहते हैं-कभी अंदर झाँकते ही नहीं । दूसरों को बताते हैं अपनी मुश्किलें, लेकिन खुद से ही शेयर नहीं करते।
हमारे बारे में , हमारी परेशानी के बारे में हमें ही ज्यादा अच्छे से पता होता है इसलिए यदि एक बार भी ध्यान से सारी परेशानियों पर विचार किया जाए, चिंतन किया जाए बजाय चिंता करने के तो उनका हल निकल आता है ।
याद रखिए, ईश्वर ने हमें अनंत शक्तियों से नवाजा है- बोलने-सुनने की शक्ति, विचार करने की शक्ति, श्रम करने की शक्ति, भक्ति की शक्ति! तो जो हमारी शक्तियाँ हैं वो भगवान की हुईं और जो भगवान जी की शक्तियाँ हैं वो हमारी हुईं । अर्थात, किसी भी हालत में हम भगवान से अलग हैं ही नहीं । इसका अर्थ पराधीनता कदापि नहीं हो सकता क्योंकि आत्मा तो परमात्मा का ही अंश है ।
अतः जब हम , स्वयं को प्राप्त शक्तियों का पूर्ण सदुपयोग कर लेंगे केवल तब ही ईश्वर के पास से और शक्तियाँ माँगने के अधिकारी होंगे । पहले उतने का उपयोग करो , जितना तुम्हारे पास है । पहले अपनी बुद्धि को लगाओ और अपना दिमाग चलाओ फिर किसी दूसरे व्यक्ति से मदद माँगो ।
कैसे करें स्वयं अपनी सहायता?
मान लीजिए, कोई समस्या आई, हम में से ज्यादातर लोग क्या करते हैं?
हम तुरंत उसे अपने किसी मित्र या परिजन से बताते हैं । ये प्रवृत्ति हमारी दूसरों पर निरभर्ता को बढ़ाती है। कोई भी छोटी-बड़ी समस्या या बात कई लोगों की राय से उतने अच्छे तरीके से हल नहीं हो पाती है, जितना कि ‘ खुद एक बार ध्यान से सोचने से ‘ हो जाती है । क्योंकि जितने मुँह, उतनी बातें ।
क्योंकि बात स्वयं के जीवन की हो रही है तो इस प्रकार के निर्णय जैसे – कहीं जाना चाहिए कि नहीं , गेम छोड़ पढ़ाई करना , अपनी TV की आदत छुड़ाना , ऑनलाइन समय बर्बाद न करना, अपने कॅरियर संबंधी निर्णय लेना, अपने काम खुद करना, मन ही मन योजना बना कर उस पर अमल करना, आदि अपने छोटे-मोटे काम तो खुद ही पूरे करना करना आवश्यक है। देखिए, जीवन में कुछ चीजें ऐसी होती हैं जिन्हें हमारे लिए और कोई नहीं कर सकता, हमें ही करनी पड़ती है । जैसे – अपनी भूख मिटाना है तो खाना भी खुद को ही खाना पड़ेगा, किसी और के खाने से तो हमारी भूख नहीं मिटेगी ।
ठीक इसी तरह “यदि अपना जीवन सँवारना है, अपना कॅरियर बनाना है और सफल होना है तो मेहनत भी अपने को ही करनी पड़ेगी।”
फिर चाहे वो शारिरीक रूप से हो या मानसिक रूप से, आप अपनी मदद कीजिए । किसी से मार्गदर्शन लीजिए, अनुसंधान कीजिए; लेकिन अपनी समस्या का समाधान आप ढूंढिए, अपने निर्णय आप स्वयं कीजिए, यह शक्ति आप ही के पास है- एक बार इसे पहचानिए और प्रयोग कीजिए। अपने निर्णयों पर अमल करिए और सिद्ध करिए कि आप सही निर्णय ले कर उसे फलीभूत कर सकते हैं। ईश्वर पर आस्था रखिए, मित्रों-रिश्तेदारों से सहयोग की अपेक्षा भी रखिए लेकिन उस से पहले अपने हिस्से की मेहनत आप कीजिए। किसी से उम्मेद रखना गलत नहीं है लेकिन किसी पर निर्भर हो जाना बिल्कुल सही नहीं है। इसलिए आइए, अपने हिस्से के अंधेरे को दूर करने के लिए दीया जलाने का संकल्प लें और पुरजोर कोशिश करें की हमारे प्रयासों में कोई कमी न रहे। ईश्वर और समाज स्वतः आपकी मदद के लिए आगे आएगा!