वो किताबों में दर्ज था ही नहीं-जो सबक सिखाया ज़िंदगी ने …

किसी शायर ने क्या खूब कहा है“एहसान ये रहा तोहमत लगाने वालों का मुझ पर, कि उठती उंगलियों ने मुझे मशहूर कर दिया।”
मित्रों, मेरी तरह आपका भी वास्ता ज्यादातर दो किस्म के लोगों से ही पड़ा होगा – पहले वो लोग जिन्हें लगता है कि वे सर्वज्ञ, सम्पूर्ण ज्ञान के भंडार और सर्वश्रेष्ठ हैं। ऐसे लोगों को न कुछ नया सीखना अच्छा लगता है, न किसी की सलाह और न अपने किसी निर्णय पर पुनर्विचार की ही आवश्यकता प्रतीत होतीत है। यदि कोई कार्य उनकी इच्छा के अनुरूप न हुआ तो उसमें भी वो किसी न किसी पर तो दोषारोपण कर ही देंगे (क्योंकि वो तो काभी गलत हो ही नहीं सकते और न ही कोई गलती कर सकते हैं)। दूसरे वो लोग हैं जो संतुलन में विश्वास करते हैं, जिन्हें अपने अर्जित ज्ञान पर घमंड नहीं होता, क्योंकि वो जानते हैं कि ज्ञान की गुणवत्ता और परिमाण समय सापेक्ष है। जो कल सही था, वो आज भी प्रासंगिक हो, ये आवश्यक नहीं (उदाहरण के लिए- हमारी पीढ़ी का बचपन हस्तलिपि सुधारने के प्रयासों में बीत गया लेकिन आज हमारी उँगलियों को key Board का आदी होना पड़ रहा है)। इसलिए ऐसे लोग अपने ज्ञान और अनुभव का परिमार्जन करते रहते हैं, सबकी सलाह को सम्मान देते हैं सबको साथ ले कर चलने का प्रयास करते हैं।

पहले किस्म के लोगों की लंबी फेहरिस्त है और दूजे किस्म वालों की भी कमी नहीं है। रावण हो या कसं, दक्ष प्रजापति हों या हिटलर, ये और इनके जैसे सभी लोग पहली श्रेणी में आते हैं – इनके लिए दुनिया के सारे पैमाने उस वक़्त बदल जाते हैं जब बात खुद के हक़ में नहीं होती है जबकि राम, कृष्ण, महात्मा गांधी, नेल्सन मंडेला और इनके जैसे लोग दूसरी श्रेणी में आते हैं – इनके लिए ज़िंदगी काभी आसान तो कभी मुश्किल होती है, कभी उफ्फ़ तो कभी वाह होती है। ना भूलना कभी अपनी मुस्कान को क्योंकि इससे हर मुश्किल आसान हो जाती है!

हमें यह अच्छी तरह से समझ लेने की आवश्यकता है कि “अहंकार बहुत भूखा होता है और इसका सर्वाधिक प्रिय भोजन है रिश्ते!” जी हाँ, सही पढ़ा आपने। अहंकारी व्यक्ति सबसे पहले अपने रिश्तों से हाथ धोता है। जब तक उसको इस बात का अहसास होता है तब तक वो नितांत अकेला पड़ चुका होता है। मैंने कहीं पढ़ा है- “अगर परछाई कद से और बातें औकात से बड़ी होने लगें तो समझ लेना चाहिए कि सूरज ढलने वाला है।” जिन लोगों से अपनी जरा सी जुबान संभाली नहीं जाती, उनसे भला ज़िंदगी के रिश्ते संभाल लेने की उम्मीद कोई कैसे कर सकता है!

हमें सदैव यह याद रखना चाहिए कि- “श्रद्धा, ज्ञान देती है, नम्रता, मान देती है, और योग्यता, स्थान देती है। अगर इन तीनों का हमारे व्यक्तित्व में सम्मिश्रण हो जाए तो निश्चय ही ये हमें हर जगह सम्मान देती हैं।”

सारे सबक किताबें पढ़ लेने भर से नहीं मिल जाते- बहुत सारे सबक ज़िंदगी सिखाया करती है। जो लोग ज़िंदगी के सिखाए सबक को समझ कर याद रख कर उस पर अमल करते हैं उनकी ज़िंदगी संवर जाती है अन्यथा एक दिन ऐसा आता है जब ज़िंदगी ही उन्हें नकार देती है।   

इसलिए जब गुलज़ार  साहब ने कहा कि –“इतना क्यों सिखाए जा रही हो ज़िंदगी, हमें कौनसी सदियाँ गुजारनी  है यहाँ पर” तो सहसा खयाल आया कि – “सीखा जाता है हर हुनर किसी न किसी उस्ताद से, मगर ज़िंदगी के सबक तो जमाने की ठोकरें ही सिखाती है, क्योंकि वो किताबों दर्ज था ही नहीं जो सबक सिखाया ज़िंदगी ने!”

इसलिए कहता हूँ साहेबान – “फिसलती रेत से सीख लो सबक ज़िंदगी के, जोर अपनी जगह होता है – नज़ाकत अपनी जगह!”

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Published by DR. TRILOK SHARMA

I have traveled a long way towards the final destination of life. Many times I took a wrong turn on the road and spend a lot of precious time to come back on main road. Many times, I helped & supported the people who did not deserve my attention, and unknowingly ignored the ones who cared for me. Through this site, I want to put some traffic signs on the route of life to help those who are willing not to make similar mistakes that I did.

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